अहसान -फ़रामोश सा दिन....

May 20, 2017

मुसलसल  भागती ज़िंदगी में ....

अहसान -फ़रामोश सा दिन

तजुर्बो को जब,

शाम की ठंडी हथेली पर रखता है....

ज़ेहन की जेब से,

कुछ तसव्वुर फ़र्श पर बिछाता हूँ

फ़ुरसत की चादर खींचकर..

उसके तले पैर फैलाता हूँ

एक नज़्म गिरेबा पकड़ के मेरा....

पता पूछती है मुझसे

"बता तो

तू कहाँ था?" ........




(Dr. Anurag)

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